Thursday, 22 December 2011

Brave Jhansi Ki Rani and The Heroic death

"तभी अंग्रेज़ घुड़सवार वहाँ आ गए। एक ने पीछे से रानी के सिर पर प्रहार किया जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और उनकी एक आँख बाहर निकल आयी। उसी समय दूसरे गोरे सैनिक ने संगीन से उनके हृदय पर वार कर दिया।"
 19 नवंबर, झांसी रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिन इंदिरा गाँधी के जन्म दिन की चकाचोंध में जाता है क्योंकि उसी दिन इंदिरा गाँधी का भी जन्म दिन होता है | हर समाचार पत्र में इंदिरा गाँधी जी को अभिवादन किया जाता है  लेकिन हमारी वीर झासी की रानी को नमन करने के लिए बहुत कम लोग आगे आते है |

झाँसी की रानी का परिचय : बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' पुकारा जाता था| अपनी माँ की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ सीखीं।
चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत अपने साथ बाजीराव के दरबार में मनु को ले जाते थे |मनु ने पेशवा के बच्चों के साथ-साथ ही तीर-तलवार तथा बन्दूक से निशाना लगाना सीखा। इस प्रकार मनु अल्पवय में ही अस्र-शस्र चलाने में पारंगत हो गई। अस्र-शस्र चलाना एवं घुड़सवारी करना मनु के प्रिय खेल थे। बाद में रानी लक्ष्मीबाई ने उन्होंने स्रियों की एक सेना भी तैयार की।

अंग्रेज़ों ने क़िले को घेर कर चारों ओर से आक्रमण किया। लडाई प्रारंभ होनेपर झांसी के तोपों ने अंग्रेजों के छक्के छुडा दिए । रानी एवं उनकी प्रजा ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि अन्तिम श्वाँस तक क़िले की रक्षा करेंगे। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूरोज ने अनुभव किया कि सैन्य-बल से क़िला जीतना सम्भव नहीं है। 

स्फूर्तिदायी बलिदान और अंतिम समय :

१८ जूनको रानी लक्ष्मीबाईके शौर्यसे हताश अंगे्रजोंने ग्वालियर पर सर्व ओरसे एकसाथ आक्रमण किया । उस समय शरणागति न करते हुए शत्रुका घेरा तोडकर बाहर जानेकी सोची । घेरा तोडकर जाते हुए बागका एक नाला आगे गया ।

रानी ने अपना घोड़ा दौड़ाया पर दुर्भाग्य से मार्ग में एक नाला आ गया। घोड़ा नाला पार न कर सका। रानीके पास सदाकी भांति ‘राजरत्न' घोडा न होने के कारण दूसरा घोडा नालाके पास ही गोल-गोल घूमने लगा |

तभी अंग्रेज़ घुड़सवार वहाँ आ गए। एक ने पीछे से रानी के सिर पर प्रहार किया जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और उनकी एक आँख बाहर निकल आयी। उसी समय दूसरे गोरे सैनिक ने संगीन से उनके हृदय पर वार कर दिया।

अत्यन्त घायल होने पर भी रानी अपनी तलवार चलाती रहीं और उन्होंने दोनों आक्रमणकारियों का वध कर डाला। फिर वे स्वयं रक्तसे नहाकर घोडे से रक्तसे नहाकर घोडेसे नीचे भूमि पर गिर पड़ी। उसका रौद्र रूप देख कर गोरे भाग खड़े हुए।

पुरूष वेशमें होनेके कारण रानी लक्ष्मीबाईको गोरे सैनिक उन्हें पहचान नहीं सके । उनके गिरते ही वे चले गए ।

स्वामिभक्त रामराव देशमुख अन्त तक रानी के साथ थे। उन्होंने रानी के रक्त रंजित शरीर को समीप ही बाबा गंगादास की कुटिया में पहुँचाया। रानी ने व्यथा से व्याकुल हो जल माँगा और बाबा गंगादास ने उन्हें जल पिलाया।

रानी लक्ष्मीबाईके एकनिष्ठ सेवकों ने उनके मुखमें गंगोदक डाला । मेरा देह म्लेच्छोंके हाथ न लगे, ऐसी इच्छा प्रदर्शित कर उन्होंने वीर मरण स्वीकार लिया । रानी को असह्य वेदना हो रही थी परन्तु मुखमण्डल दिव्य कान्त से चमक रहा था।

उन्होंने एक बार अपने पुत्र को देखा और फिर वे तेजस्वी नेत्र सदा के लिए बन्द हो गए। वह 18 जून 1858 का दिन था जब क्रान्ति की यह ज्योति अमर हो गयी।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को कोटि कोटि नमन |

जय माँ भारती |

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